काव्यगगन( kavyagagan)

जब जब छलके अंतरमन,भावोंं की हो गुंजन,शब्द घटाओं से उमड़ घुमड़, रचते निर्मल ...'काव्यगगन'! यह रेणु आहूजा द्वारा लिखा गया ब्लाग है .जो कि उनकि निजि कवितओं का संग्र्ह है!it is a non profitable hobby oriented blog.containing collection of hindi poetries.

Wednesday, September 27, 2006

तुम



राधे कृष्णा से कहने लगी एक दिन
कैसे दिल में उतर कर चले आए तुम

पहले अपनें में रहती थी खोई हुई
अब तेरे ख्यालों में रहती हूं गुम

इस दिल का ये आलम कैसे कहूं
मुझ को मुझी से चुरा लाए तुम

अधिकारों का मैने किया था वरण
कर्तव्यों की भूमि पर ले आए तुम

अनजाना सा मैनें था समझा तुम्हें
मुझे अपना बना कर चले आए तुम

पहले मुश्किल थी राहें लगती बड़ी
मुशकिलों को ही राहें बना लाए तुम

कृष्णा कृष्णा थी राधा रटती कभी,
कृष्णा राधे में अंतर हुआ कैसे गुम

समर्पण हो मन का इस तरह
'मैं' ना रहे ना ही रह जाए' तुम'

-रेणू

ज़िंदगी पर क्षणिका




कभी कभी खुली किताबों के
हर्फ़ आखों के सामनें मुस्कुराते हैं,
संजीदा होते हैं, जो , राज़ वही
उनका जान पाते हैं
-रेणू

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