काव्यगगन( kavyagagan)

जब जब छलके अंतरमन,भावोंं की हो गुंजन,शब्द घटाओं से उमड़ घुमड़, रचते निर्मल ...'काव्यगगन'! यह रेणु आहूजा द्वारा लिखा गया ब्लाग है .जो कि उनकि निजि कवितओं का संग्र्ह है!it is a non profitable hobby oriented blog.containing collection of hindi poetries.

Wednesday, September 27, 2006

तुम



राधे कृष्णा से कहने लगी एक दिन
कैसे दिल में उतर कर चले आए तुम

पहले अपनें में रहती थी खोई हुई
अब तेरे ख्यालों में रहती हूं गुम

इस दिल का ये आलम कैसे कहूं
मुझ को मुझी से चुरा लाए तुम

अधिकारों का मैने किया था वरण
कर्तव्यों की भूमि पर ले आए तुम

अनजाना सा मैनें था समझा तुम्हें
मुझे अपना बना कर चले आए तुम

पहले मुश्किल थी राहें लगती बड़ी
मुशकिलों को ही राहें बना लाए तुम

कृष्णा कृष्णा थी राधा रटती कभी,
कृष्णा राधे में अंतर हुआ कैसे गुम

समर्पण हो मन का इस तरह
'मैं' ना रहे ना ही रह जाए' तुम'

-रेणू

5 Comments:

At 3:39 AM, Blogger Reetesh Gupta said...

रेणू जी,

बहुत सुंदर कविता है । विशेष कर यह दो लाइने ।

अधिकारों का मैने किया था वरण
कर्तव्यों की भूमि पर ले आए तुम

बधाई !!!

रीतेश गुप्ता

 
At 11:24 AM, Anonymous Anonymous said...

बहुत ही सुन्दर रचना है, रेणु जी.
मुझे याद है, ऐसे ही कुछ भाव मेरी एक 10 साल पहले लिखी कविता मे थे.
यदि मेरी डायरी मे कहिं मिली तो अपने ब्लाग मे लिखुँगा..

 
At 10:08 PM, Blogger Admin said...

kabitane mughd kar diya renu ji

bdhayi

 
At 10:25 PM, Blogger renu ahuja said...

रीतेश जी, राही जी, और ज़ालिम जी,

आप सबने 'तुम' के काव्यभाव को पसंद किया , यह आप सबकी भावों को गहराई से समझ पाने का परिणाम है,
मेरी सदैव लेखनी अपना काव्यधर्म निभाती रहे यही सतत प्रयास है, और आप सब अपनी आलोचनाओं और विवेचन से अवगत करवाते रहें यह अनुरोध है!

धन्यवाद.
-रेणू

 
At 2:15 PM, Blogger सतपाल ख़याल said...

bahut khoob!
sat pal khyaal
aajkeeghazal.blogspot.com

 

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