काव्यगगन( kavyagagan)

जब जब छलके अंतरमन,भावोंं की हो गुंजन,शब्द घटाओं से उमड़ घुमड़, रचते निर्मल ...'काव्यगगन'! यह रेणु आहूजा द्वारा लिखा गया ब्लाग है .जो कि उनकि निजि कवितओं का संग्र्ह है!it is a non profitable hobby oriented blog.containing collection of hindi poetries.

Wednesday, September 27, 2006

ज़िंदगी पर क्षणिका




कभी कभी खुली किताबों के
हर्फ़ आखों के सामनें मुस्कुराते हैं,
संजीदा होते हैं, जो , राज़ वही
उनका जान पाते हैं
-रेणू

3 Comments:

At 4:12 AM, Blogger Upasthit said...

अहा, क्या कहने ।
देखन मे छोटे लगें घाव करें गम्भीर...... पर एक बात कहीं यह आत्ममुग्धता तो नहीं ?

 
At 6:15 PM, Blogger Rachna Singh said...

कम शव्द घहन अर्थ

 
At 11:03 PM, Blogger renu ahuja said...

चिर नीरव, उपस्थित, एवं रचना जी,
कम शब्दों की भली कही
मात्र प्रयास था नन्हा सा
शुक्रिया, आपको भला लगा.
-रेणू

 

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