काव्यगगन( kavyagagan)

जब जब छलके अंतरमन,भावोंं की हो गुंजन,शब्द घटाओं से उमड़ घुमड़, रचते निर्मल ...'काव्यगगन'! यह रेणु आहूजा द्वारा लिखा गया ब्लाग है .जो कि उनकि निजि कवितओं का संग्र्ह है!it is a non profitable hobby oriented blog.containing collection of hindi poetries.

Tuesday, May 09, 2006

बसेरा





पर्वतों की गोद में
हो पेड़ों की झुरमुट एक.
बहती नदी संग में
और चहकती बुलबुल एक

प्रकृति अपनी, हम उसके
काक गान जहां गीत लगे
सुबह का सूरज हो सुनहला
मीठी शांति साथ रहे

धरती अम्बर हों साथ वहां
बहती नदिया का गीत सुने
गगन के तारे झुके जहां
अनबोला संगीत झरे

प्रकृति की एसी बाहों मे
रुपहला एक बसेरा हो
सूरज की पहली किरणों से
उस घर में नित सवेरा हो

धरती, अंबर ,चांद ,अरूण
लगें हमजोली और हमदम
तेरा हो या मेरा हो
सुंदर एक बसेरा हो!!!
-रेणु.

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