काव्यगगन( kavyagagan)

जब जब छलके अंतरमन,भावोंं की हो गुंजन,शब्द घटाओं से उमड़ घुमड़, रचते निर्मल ...'काव्यगगन'! यह रेणु आहूजा द्वारा लिखा गया ब्लाग है .जो कि उनकि निजि कवितओं का संग्र्ह है!it is a non profitable hobby oriented blog.containing collection of hindi poetries.

Thursday, March 29, 2007

कमाई





मैं बस में बैठी राजेन्द्र नगर से गुज़र रही थी
बस ट्रैफ़िक जाम में फंसी दो दुकानों के आगे खड़ी थी
एक थी मुन्ना भाई कसाई की, दूसरी राव टेलर सिलाई की
दोनों अपनी दुकानों में तन्मयता से अपने काम में लगे थे

एक, बोटियां काट कर हिसाब किताब से तराजू में तोल रहा था
दूजा बडे़ जतन से कपड़े की बांह बना कर कंधे से जोड़ रहा था

पहला बनी बनाई रचना के टुकड़े कर रहा था
दूजा रचना रचने के लिये टुकड़े सिल रहा था

पहला ईशवर के बनाए तंतुओं को कर रहा था सपाट
दूजा, सपाट तंतुओं को काट, सिल रहा था तन का लिहाफ़

दोनों क बस एक ही लक्ष्य था, जोड़ से या तोड़ से होनी चाहिये कमाई
धंधे की पसंद से बड़ी पेट की आग, धंधा सिलाई हो या कसाई..!!!

-रेणू आहूजा
(यह रचना प्रकाशित हो चुकी है.)


0 Comments:

Post a Comment

<< Home

kavyagaganLiterature Blogs by Indian Bloggers kavyagaganLiterature Blogs by Indian Bloggers