काव्यगगन( kavyagagan)

जब जब छलके अंतरमन,भावोंं की हो गुंजन,शब्द घटाओं से उमड़ घुमड़, रचते निर्मल ...'काव्यगगन'! यह रेणु आहूजा द्वारा लिखा गया ब्लाग है .जो कि उनकि निजि कवितओं का संग्र्ह है!it is a non profitable hobby oriented blog.containing collection of hindi poetries.

Tuesday, May 09, 2006

बसेरा





पर्वतों की गोद में
हो पेड़ों की झुरमुट एक.
बहती नदी संग में
और चहकती बुलबुल एक

प्रकृति अपनी, हम उसके
काक गान जहां गीत लगे
सुबह का सूरज हो सुनहला
मीठी शांति साथ रहे

धरती अम्बर हों साथ वहां
बहती नदिया का गीत सुने
गगन के तारे झुके जहां
अनबोला संगीत झरे

प्रकृति की एसी बाहों मे
रुपहला एक बसेरा हो
सूरज की पहली किरणों से
उस घर में नित सवेरा हो

धरती, अंबर ,चांद ,अरूण
लगें हमजोली और हमदम
तेरा हो या मेरा हो
सुंदर एक बसेरा हो!!!
-रेणु.

11 Comments:

At 7:28 AM, Blogger Udan Tashtari said...

वाह भई, रेणु जी.
अच्छा लगा.

समीर लाल

 
At 10:12 AM, Blogger Pratik Pandey said...

बहुत सुन्दर शब्द-चित्र खींचा है आपने अपने सपनों के बसेरे का। इस तरह का बसेरा तो हर कोई चाहेगा।

 
At 5:08 PM, Blogger Udan Tashtari said...

अच्छा भाव है, रेणु जी.

 
At 9:46 PM, Blogger renu ahuja said...

समीर जी और प्रतीक जी,
कविता पसंद करने के लिए- शुक्रिया!
प्रतीक जी,
हमनें तो कविता के अंत मे सभी के लिए ईशवर से एसे बसेरे के लिए प्रार्थना की है< कि तेरा हो या मेरा हो....एसा एक बसेरा हो, और आपने अपनी प्रतिक्रिया दे कर हमारी ही बात का समर्थन किया है, अत: इसके लिए धन्यवाद.!
-रेणु

 
At 4:40 AM, Blogger Laxmi said...

सुन्दर कविता है और चित्र भी, रेणु जी।

 
At 6:58 AM, Blogger Basera said...

रेणु जी, कविता अच्छी है। कविता तो मेरे बस की बात नहीं, लेकिन आपकी प्रोफ़ाईल में जो हिन्दी लिखी है, उसमें बहुत ग़लतियां हैं, कृपया ठीक कर लें।

 
At 5:58 AM, Anonymous Anonymous said...

Bahut sunder likha hai renuji

Amardeep

 
At 8:27 AM, Blogger renu ahuja said...

लक्ष्मी जी, और महावीर जी,
जितनी अच्छी आपको मेरी कविता लगी, उतनी ही अच्छी मुझे आपकी प्रतिक्रिया लगी, कारण..आप दोनों ही अच्छे लेखक/कवि हैं, और आपकी सरहाना मेरे लिये उत्साह वर्धन का माध्यम है !

 
At 5:56 AM, Anonymous Anonymous said...

RENUJI LAGTA HAI AAP BAHUT BUSY HAIN AAJKAL YA BASERE MAIN HI SO GAYI HAI, BADE DIN SE KOI POEM POST HI NAHI KI, HUM INTEJAAR KAR RAHE HAIN AAPKI SUNDER RACHNAOO KA.

APKA PRASHANSHAK
XYZ

 
At 9:10 AM, Blogger renu ahuja said...

आदरणीय xyz जी, आप सही कह रहे है,

राहे ज़िन्दगी मे मसरूफ़ है इस कदर ,
खो गए कहां हम, हमें खुद ही नहीं खबर.!!!

नई रचना तक इन्ही पंक्तियों से काम चला लीजीए :)!
सादर-
रेणु.

 
At 7:16 PM, Anonymous Anonymous said...

Simply Awesome...

 

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