काव्यगगन( kavyagagan)

जब जब छलके अंतरमन,भावोंं की हो गुंजन,शब्द घटाओं से उमड़ घुमड़, रचते निर्मल ...'काव्यगगन'! यह रेणु आहूजा द्वारा लिखा गया ब्लाग है .जो कि उनकि निजि कवितओं का संग्र्ह है!it is a non profitable hobby oriented blog.containing collection of hindi poetries.

Saturday, April 08, 2006

ताजमहल




प्यार के निशां भि होते है अजब,
न कोई शीकन मगर दिल में दर्द

सुना करते हैं कि मुहब्बत थी बेपनाह
दिलशाद दो दिल, मुमताज़ - शाहजहां

कौन जाने मुमताज़ कितने दर्द पी गई
अदब से बंधी अपने होंठ सी गई

इल्म जब हुआ एक खावींद को
तो शायद एक निशानी ताजमहल बन गई!
-रेणु


निशां

२.प्यार ही नहीं अमीरी का भी निशां है ताजमहल,
ये बात और है कि प्यार तो मुफ़िलस भी किया करते है!
-रेणु
ये पंक्तियां निम्न जालाधार पर भी पर्काशित हो चुकी है
\http://www.geocities.com/muktaksaagar/

14 Comments:

At 3:37 AM, Blogger Udan Tashtari said...

बहुत बढिया, मज़ा आया आपकी लेखनी पढ कर.
समीर लाल

 
At 9:44 AM, Blogger renu ahuja said...

शुक्रिया समीर जी आपको लिखा पसंद आया.
-रेणु

 
At 12:47 PM, Anonymous Anonymous said...

सुन्‍दर | इससे ज्‍यादा कुछ कह नहीं सकता|


दीपक

 
At 4:47 PM, Anonymous Anonymous said...

Mohabat to dilon ka jajba hai,jiske samne dunia ki har sheh choti hai shayed,bahut acha likha hai renu ji.

XYZ

 
At 7:28 PM, Blogger renu ahuja said...

शुक्रिया दीपक जी,
इतने कहे में भी आपका कविता के भावों को समझनें का प्राणप्रण झलकता है!
भवदीया
श्रीमति रेणु

 
At 7:29 PM, Blogger renu ahuja said...

xyz ji, आप यदि अपना नाम लिख देते तो कम से कम संबोघन में भी काव्यता का पुट आ जाता, सो फ़िलहाल इसी संबोधन से काम चला रही हूं और आपकी परतिक्रिया का उत्तर दे रही हूं!!!

आदरणीय अग्यात
उर्फ़ xyz जी,
सच है यही,
जज़्बा-ए-प्यार के आगे ,
छोटी है, यह दुनिया भी,
समेटनें को भाव ही बहुत हैं,
भावनांए नेह की असीम ही....!!!

-श्रीमति रेणु.

 
At 11:16 AM, Anonymous Anonymous said...

Taj ki zanki va sabda chitra man ko bha gaya,Aap ki kavita main dum hai vajan hai chahe shhanika ho ya achhandas ya Hasya/vyangya,Dhanyavad

 
At 8:09 PM, Anonymous Anonymous said...

मुहोबत कि खुबसुरत मज़ार को सलाम.
मोहबत भी ऐसी कि 14 साल के वैवाहिक जीवन में 13 बच्चे! और अगली बार मुमताज का देहांत.
परदे के पीछे कि कहानी रूमानी तो नहीं हैं. अतः ताज को देखो, ताज पर लिखो. यही सुन्दर हैं.

 
At 9:02 PM, Blogger renu ahuja said...

बलिया जी और संजय जी.
आपकी प्रतिक्रिया के लिये शुक्रिया !

संजय जी,
जब 'ताज' को पहली बार देखा तो बस देखती ही रह गई, 'प्यार का मकबरा' यूं ही तो नहीं पूरी दुनिया के दिलो दिमाग पर आज भी अपने निशान छोड़ जाता है, जब मुमताज़ की कब्र को देखा तो ये भी याद आया कि ताजमहल बननें से पहले उसकी कब्रगाह कहीं और थी और ताजमगल बननें पर उसकी कब्र की जगह बदली गई...लगा की ताज की ऊपर की खूबसूरती तो सभी ने देखी है, ना जाने क्यूं पल भर के लिये इस बात का ख्याल हो आया कि मुमताज़ को मरने के बाद भी एक बार जगह बदलनी पड़ी.....और इसीलिये इस रचना ने जन्म लिया.!
जहां तक आपका कहना है, कि बस ताज को देखॊ और उसी पर लिखॊ...तो बात तो सही है, सो कोशिश करेंगे कि एसा भी करें...क्यूकि ताज करोड़ों लोगों की पसंद कि तरह हमारी भी पसंदीदा इमारतों में से एक है...कभी न कभी इसकी खूबसूरती पर भी लिखेंगे ज़रूर.!

 
At 3:48 PM, Anonymous Anonymous said...

Tazmahal ko pyaar ka makbara mat kahiye

woh pyaar ki nishani hai

 
At 6:40 PM, Blogger renu ahuja said...

anonymousजी, 'प्यार का मकबरा' नाम अगरा में ही सुनने को मिला था, हमें भी बिल्कुल यही लगा जो आप कह रहे है, मगर वहां के लोगों का कहना है कि प्यार का मकबरा यानी प्यार के ख्त्म होने की निशानी ही नहीं है, बल्की यह एक मकबरा हो कर भी प्यार को ज़िन्दा रखने की निशानी है, तो इस तरह से तो ये वही बात हुई जो आप कह रहे है,बस अपना अपना नज़रिया है , अंदाज़ है पुकारने का! एक निवेदन है कि कृपया अपना नाम ज़रूर लिखा कीजिए अपने विचार प्रकट करते समय, इसमें कोई हर्ज़ नहीं है.!
-रेणु

 
At 1:03 PM, Anonymous Anonymous said...

एक जबरदस्त रचना ..बधाई ..यहाँ आप ताज के बारे में कुछ और जान सकते हैं.

 
At 12:14 PM, Blogger renu ahuja said...

शुक्रिया

हम तो बस इतना जानते है कि

बे ईंतहा खूबसूरत है ताजमहल,
इश्क के जुनूं की मूरत है ताजमहल,
जमुना किनारे चांदनी मे चमकता,
आफ़ताबे-मुहब्ब्त है ताजमहल.
-रेणू

 
At 2:11 PM, Anonymous Anonymous said...

So Nice about TAJMAHAL : -

Tajmahal ko dekhkar kab tak sabar karoon,
Aankhon par to patti bandh loon par is dil ka kya karoon,
Jhalak dikhla kar chand chandni ki na jane kahan badlon me kho gaya,
Hum TAJMAHAL ko dekhte rahe chandni ke bahane, na jane kab savera ho gaya.

Regards
Pankaj Thareja.

 

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