दोस्ती पर एक क्षणिका
दोस्ती के चेहरे हज़ार होते है,
बंधे जिनसे मन के तार होते हैं,
कुछ शब्दों की मोहताज हो,
वो दोस्ती ही क्या,
दोस्त तो भरोसों का आफ़ताब होते हैं.
-रेणु
जब जब छलके अंतरमन,भावोंं की हो गुंजन,शब्द घटाओं से उमड़ घुमड़, रचते निर्मल ...'काव्यगगन'! यह रेणु आहूजा द्वारा लिखा गया ब्लाग है .जो कि उनकि निजि कवितओं का संग्र्ह है!it is a non profitable hobby oriented blog.containing collection of hindi poetries.
5 Comments:
रेणु जी
बहुत सुंदर भाव हैं इन पंक्तियों मे.
बधाई.
समीर लाल
बहुत से अक्षरों को अधिया दिया आपने।
आखिर क्यों?
रेणु जी,
आप की क्षणिका तो अच्छी है पर छोटी सी कविता में वर्तनी की त्रुटियाँ बहुत अधिक हैं। आप को हिन्दी टाइपिंग में कोई दिक्कत हो तो चिट्ठाकार समूह पर पूछें।
"दोस्ती प्र [पर] एक क्षिण्का [क्षणिका]."
दोस्ती के चेह्रे [चेहरे] हज़ार होते है,
बंधे जिन्से [जिनसे] मन के तार होते हैं,
कुछ शब्दों की मोह्ताज [मोहताज] हो वो दोस्ती ही क्या,
दोस्त तो भरोसोंं [भरोसों] का आफ़ताब होते हैं.
मित्रता का भाव निश्छल,
शब्दों से व्यक्त नहीं होता
ये ऐसी दुनिया है जिसमें,
बस मन का काम ही होता।
अच्छी क्षणिका है।
- दीपक
समीर लाल जी,
सराहना के लिए धन्यवाद, अचानक एक भाव मन में आया और लिख ड़ाला, आपको पसंद आया, अच्छा लगा.
दीपक जी
आपकी पंक्तियां भी अति सुंदर है
-रेणु
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