नवरंग
नवरंग
सच है इत्ना ही की,
पैसा लील गया सभी
रंग, गुलाल,
भांग, अबीर
प्रेम रंगोली
हृद्य की झोली
उडते रंग
और हंसी ठिठोली,
नेह की भाषा
स्नेह की बोली
फ़िर भी एक रंग
रहा अछूता
पावन, ष्रेय्स,
मृदुल, धवल सा
नाम है इसका
मन की आशा
जब तक है इस्का
अस्तित्व
ह्र रंग रहेगा
सरस सजल सा.
-रेणु आहूजा.
2 Comments:
रेणु जी,
सच कहा आपने, मन की आशा से ही हम पुनः अपने उन्हीं संस्कारों को स्थापित कर सकते हैं, जो सदियों से भारतीय जीवन और दर्शन का अंग रहे हैं।
सुन्दर रचना।
-दीपक
Sach kaha hai,man ki asha main hi itna lamba safar taye ho pata hai,asha hi insaan ko aage aur aage le jaati reht hai,sari duniya sirf isi asha ke ghere main fas kar jindagi bita deti hai,kuch ko to hasil ho jata hai aur kuch shayed kal kuch ho jaye ki asha main jindagi bita dete hain, kavita achi hai renu ji
amardeep
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